संसार में कोई भी आदमी ऐसा नहीं होता जिसमें थोड़ी-बहुत अच्छाइयाँ न हों। 'अच्छाइयाँ' माने 'गुण'। गुणों की संख्या इतनी अधिक और इतनी बहुमुखी है कि उन्हें शब्दकोश और आदमियों के मुँह नहीं गिना सकते। यही कारण है कि 'अच्छे-से-अच्छा' आदमी भी 'सबसे अच्छा' और 'सबके लिए अच्छा' नहीं हुआ करता उसके लिए और अधिक अच्छा बनने की गुंजाइश सदा रहती है। ऊँचाई आसमान है।
केवल अपने लिए अच्छा होना अच्छा होने की कोई कसौटी नहीं है। उसका मतलब मूलतः दूसरों के लिए अच्छी होना है। इन दूसरों का दायरा जितना अधिक बड़ा होगा आदमी उतना ही अधिक अच्छा होगा। गांधी और कबीर को याद कीजिए। अच्छा बनना सतत साधना से ही संभव है। त्याग के बिना कोई उपलब्धि नहीं होती।
इस पुस्तक में आपको अच्छाई की तरफ ले जानेवाले दर्जनों रास्ते पढ़ने को मिलेंगे। इनपर चलने, और कितनी दूर चलने, का निर्णय आपको स्वयं करना है। लेखक का यह अटूट विश्वास है कि इन रास्तों पर निरंतर चलनेवाले लोग ही मानवता के खंडहर नहीं होने दे रहे हैं।